Gurudev

1. आचार्य श्रीमदविजय तीर्थेन्द्रसूरीष्वरजी की जीवन रेखा -

गुरुदेव ने 17 वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की, आपका चारित्र पर्याय 50 वर्ष का रहा, आपने अपने दादा गुरु आचार्य श्रीराजेन्द्रसूरीष्वरजी म.सा. द्धारा किये गये पुन: क्रियोद्वारक का पालन कर गाव-गाव विहार करते हुए जन-जन तक दादा गुरु द्वारा स्थापित त्रिस्तुतिक की महिमा का उपदेश दिया । गुरुदेव के दो षिष्य थे, मुनि श्री लबिधविजयजी एवं मुनि श्री कमलविजयजी, दोनों षिष्यों के साथ गुरुदेव ने राजस्थान, गुजरात, मालवा के कर्इ गाँवो में विहार कर कर्इ जिनालयों की प्राण प्रतिष्ठायें करवायी। आप द्धारा किये गये कार्यो में से कुछ कार्य निम्न प्रकार है

  • भीनमाल में उज्जैनी करवाकर रिद्धी-सिद्धी प्राप्त करवायी।
  • वि.सं. 1990 के अहमदाबाद (गुज.) साधु सम्मेलन में आचार्य श्री ने शास्त्रार्थ द्वारा अनादिकाल के त्रिस्तुतिक का प्रमाण प्रस्तुत कर श्रीसंघ का गौरव बढ़ाया।
  • मोधरा गाँव में वि.सं. 1991 में श्री आशापुरी माताजी मंदिर में पशु बलि चढ़ती थी। पूज्य गुरुदेव के उपदेश से बंद करके केशर, धूप पूजा चालू की गयी।
  • झाबुआ (म.प्र.) के महाराजा द्धारा विजयदशमी के दिन 23 पशुओं की बलि चढाते थे। श्री गुरुदेव के उपदेश से बलि चढ़ाना बंद किया।
  • सांथू गाँव में शतिलादि रोग के प्रकोप को अष्टोत्तरी पूजा द्धारा शान्त करवाया

  • जन्म तिथि – विक्रम संवत 1948 कार्तिक सुदी १०
  • जन्म स्थान – सागर (बुन्देलखण्ड़) मध्यप्रदेश
  • जन्म नाम – श्री नारायण चौबे
  • माता – श्रीमती लक्ष्मीदेवी
  • पिता – श्री नाथुरामजी
  • साधुदीक्षा – संवत 1965
  • आचार्यपद – संवत 1992
  • महाप्रयाण – संवत 2014
  • समाधिस्थल – बामणवाड़जी, जिला– सिरोही

2. आचार्य श्री लबिधचन्द्रसूरीष्वरजी की जीवन रेखा -

अपने गुरु की सेवा एवं गुरुआज्ञापालन का संपूर्ण ध्यान रखते थे। अपने जीवन में नवकार मंत्र का जाप साधु क्रिया का पूर्ण पालन कर जीवन व्यतीत किया, उस दरम्यान एक अदभूत घटना घटी, बाकरा गाँव के परम गुरुभक्त शा दूदमलजी लालचंदजी का बाकरारोड़ पर व्यवसाय था, इनको स्वप्न में प्रभु दर्शन की अभिलाषा हुयी, गुरुभक्त ने अपने स्वप्न की बात गुरुदेव से कही-दिव्य दृषिटवान गुरुवर ने गुरुभक्त से प्रभु विमलनाथ भगवान को ज्ञान भंड़ार के पास वाले कमरे में विराजमान करने की अनुमति प्रदान की, अल्प समय में ही गुरुभक्त ने धुमधाम से संपूर्ण अपने व्यय से सवंत २०३१ जेठ सुदी ११ को वितराग प्रभु की तीन मूर्तिया विराजमान करवायी। उस पष्चात दादा गुरु की गुरु सप्तमी प्रतिवर्ष मनायी जाने लगी। गुरुदेव एक बार विहार में यहां पधारे तो नागनागिनी के दर्शन हुये तब गुरुदेव के मन में प्रभु पाष्र्वनाथ का जिनालय बनाने की भावना हुयी, विहार करते हुए पास के गाँव रेवतड़ा में चातुर्मास का प्रवेश हुआ, चातुर्मास में अपने गुरु की जन्मजयंती कार्तिकसुदी १० के दिन श्रीसंघ के समक्ष बाकरारोड़ पर प्रभु पाष्र्वनाथ का विशाल जिनालय बनाने की बात रखी, श्रीसंघ ने हर्षोल्लास से स्वीकार किया और बाकरारोड़ पर तीर्थेन्द्रनगर का नामांकरण किया। आष्चर्यजनक घटना हुई 2 साल के अल्प समय में ही पाष्र्वनाथ प्रभु का विशाल जिनालय का निर्माण हुआ। श्रीसंघ में प्रसन्नता थी और फिर वि.सं. २०५४ माघ सुदी ६ को प्रतिष्ठा सम्पन्न हुयी, प्रतिष्ठा के दिन प्रभु के अधिष्टायक नागदेवता भी समय पर पधारे और पुरे दिन भर उपस्थित रहे, गुरुभक्तो ने श्रद्धापूर्वक दर्शन लाभ लिया, उसके बाद इस तीर्थ की दिन प्रतिदिन ख्याति बढ़ती जा रही है, आवागमन की वृद्धि हो रही है।


  • जन्म संवत-1977 माह सुद ७ सप्तमी
  • स्थान-खरसौदकला
  • जन्मनाम-माणकचन्द
  • माता-लक्ष्मीबार्इ
  • पिता-मोहनलाल
  • दिक्षा संवत 1992-बाकरा गाँव (राज.)
  • आचार्यपदवी संवत 1924-बाकरा गाँव (राज.)
  • महाप्रयाण संवत 2051-पोष शुक्ला ७ सप्तमी
  • समाधि स्थल-तीर्थेन्द्रनगर, बाकरारोड़ (राज.)

3. मुनिराज श्री कमलविजयजी की जीवन रेखा -

अपने गुरु प्रति श्रद्धावान गुरु की सेवा रग रग में रखकर गुरु का डंका बजाया, सर्वधर्म के लोगों के साथ प्रेम रखने वाले तेजस्वी, तपस्वी मुनिराज दूर दृषिट वाले थे। बाकरा रोड़ पर छोटे जिनालय से मुनिराज को तृपित नही हो रही थी, आपकी सोच और दिव्य दृषिट ने एक विशाल जमीन का श्रीसंघ द्धारा क्रय करवाया और उसी भूमि पर यह आज विशाल तीर्थ बना है। आपके विचार मानव हितार्थ थे। आपने एक विशाल हास्पीटल का प्रस्ताव भी दिया था।

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